शुक्रबार, माघ १८, २०८१

कविता “राताे कर्पेट”

फेसबुक कवि

विरगञ्ज रक्साैल,
नेपालगञ्ज रूपेडिया
टमटमकाे यात्रा
दुबैपट्टी अाखा छाेपेर
दायाँ बायाँ हेरिसक्नु छैन
रैमट्ट व्यथा र कथा
केवल रक्साैल विरगञ्ज
विरगञ्ज रक्साैलयात्रा
राताे कार्पेट !!

शासक सवारी छ रे,
तामधाम तुल ब्यानर
अप्राकृतिक जन साङ्लाे
नारा छ सिधा हजुर सिधा
बिचबिचमा रनक्क तनक्क
गग्र्यान हिलाम्य थाहाभएन
चाकरी कि अादर अचेतनामै
लचक लचक मसक मसक
राताे कार्पेट !!

युग नायक मख्ख, मुसुक्क
स्वागत अभिवादन जयजयकार
अविर फूल गुच्छा माला धाँटी
खादा अङ्कमाल झुकाव लचक्क
अाहा पद, अहा यात्रा
यात्रा परिवर्तनकालागि
यात्रा मुक्तिकालागि
खेतबारी राताे कार्पेट !!

नायक सुलुत्त चिप्लियाे,
लड्याे तीनपाने यात्रामा
छप्ल्याङ छप्ल्याङ
बक्बकाउँदा बक्बकाउँदै अचेत
खुट्टा टेकेरै अाएथ्याे
अहिले उचाल्दै घिसार्दै
जिन्दावादे भाटहरू व्यस्त
लमतन्न राताे कार्पेट !!

७९/४/२३, दाेलखा ।

यो समाचार पढेर तपाईलाई कस्तो लाग्यो ?